जंग लंबी खींची तो कौन किस पर पड़ेगा भारी? इजरायल के एयर डिफेंस को कैसे ‘थका’ देगा ईरान

ईरान और इज़रायल के बीच तनाव दिन-ब-दिन बढ़ता जा रहा है। इजरायल की मिसाइल डिफेंस सिस्टम ने अब तक ईरान के ज़्यादातर हमलों को नाकाम कर दिया है। आइए, समझते हैं कि दोनों मुल्कों की एयर डिफेंस सिस्टम कैसे काम करती हैं और अगर जंग लंबी खिंचती है तो इजरायल को किन मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है।

इजरायल ने बना रखा है ‘अभेद्य किला’
इजरायल के पास दुनिया की सबसे मजबूत एयर डिफेंस सिस्टम में से एक है। लोग अक्सर इसे सिर्फ आयरन डोम से जोड़ते हैं, लेकिन ये इजरायली डिफेंस सिस्टम की पूरी तस्वीर नहीं है। इजरायल की डिफेंस सिस्टम कई परतों से मिलकर बनी है, जो अलग-अलग दूरी से आने वाले खतरों से निपटने के लिए तैयार की गई हैं।

आयरन डोम इनमें से एक हिस्सा है, जो छोटी दूरी के रॉकेट और तोप के गोलों को रोकता है। आयरन डोम में रडार, कमांड और कंट्रोल सिस्टम और इंटरसेप्टर मिसाइलें शामिल हैं। रडार दुश्मन के रॉकेट का पता लगाता है, कमांड सिस्टम तय करता है कि पहले किस खतरे को निशाना बनाना है और फिर इंटरसेप्टर उस रॉकेट को हवा में तबाह कर देता है।

इसके अलावा, इजरायल के पास डेविड स्लिंग, एरो 2, और एरो 3 जैसी डिफेंस सिस्टम हैं। ये ख़ास तौर पर लंबी दूरी की बैलिस्टिक मिसाइलों को तबाह करने के लिए बनाई गई हैं।

ईरानी एयर डिफेंस सिस्टम में कितना दम?
ईरान के पास बैलिस्टिक मिसाइलें, लंबी दूरी वाले ड्रोन और क्रूज मिसाइलों का बड़ा जखीरा है। बैलिस्टिक मिसाइलें एक तय रास्ते पर चलती हैं, जबकि क्रूज मिसाइलें उड़ान के दौरान अपना रास्ता बदल सकती हैं। इजरायल से करीब 1,000 किलोमीटर की दूरी पर स्थित ईरान ज़्यादातर मध्यम दूरी की बैलिस्टिक मिसाइलों और लंबी दूरी वाले ड्रोन का इस्तेमाल कर रहा है।

हाल के हमलों में किन मिसाइलों का इस्तेमाल हुआ, ये साफ नहीं है, लेकिन ईरान के पास फतह-1 और इमाद जैसी मिसाइलें मौजूद हैं। बैलिस्टिक मिसाइलों का मुकाबला करना बहुत मुश्किल है क्योंकि ये बेहद तेजी से आती हैं। इसलिए डिफेंस सिस्टम को जवाब देने का वक़्त बहुत कम मिलता है। ऐसे में अगर कोई मिसाइल रक्षा तंत्र को चकमा दे दे, तो भारी नुकसान हो सकता है।

ईरान के पास भी कुछ एयर डिफेंस सिस्टम हैं। मसलन रूस का बना हुआ एस-300 सिस्टम भी ईरान की सरहदों को सुरक्षित रखता है। लेकिन ये ज्यादातर छोटी दूरी की मिसाइलों के खिलाफ ही कारगर साबित होता हैं। इजरायल ईरान की रक्षा व्यवस्था को कमजोर करने की कोशिश कर रहा है, जिससे ये साफ नहीं है कि ईरान की कितनी एयर डिफेंस सिस्टम अभी काम कर रही हैं। हालांकि ईरान ऐसी तकनीक भी बना रहा है, जिसमें मिसाइलें उड़ान के दौरान अपने निशाने को बेहतर तरीके से ढूंढ सकें।

इजरायली एयर डिफेंस तो मजबूत लेकिन ये दिक्कत बनेगी सिरदर्द
इजरायल की रक्षा व्यवस्था अभी पूरी तरह मजबूत है, लेकिन जैसे-जैसे हमले बढ़ेंगे, उसके इंटरसेप्टर मिसाइलों का जखीरा कम हो सकता है। हर हमलावर मिसाइल को रोकने के लिए कई इंटरसेप्टर मिसाइलें दागनी पड़ती हैं ताकि नुकसान का खतरा कम हो। कुछ ख़बरों के मुताबिक, ईरान ने अपने 3,000 बैलिस्टिक मिसाइलों में से लगभग 1,000 दागी हैं, लेकिन उसके पास अभी भी बड़ा जखीरा बाकी है।। इसके साथ ही, ईरान नई मिसाइलें बनाने की ताकत रखता है।

अगर ये जंग लंबी खिंचती है, तो ये देखना अहम होगा कि किसके हथियार पहले खत्म होते हैं। इजरायल की रक्षा व्यवस्था को मज़बूत रखने के लिए इंटरसेप्टर मिसाइलों की ज़रूरत पड़ेगी। दूसरी तरफ, ईरान अपने जखीरे को फिर से भरने की कोशिश कर सकता है। दोनों मुल्कों की रक्षा और हमले की ताकत इस जंग के नतीजे को तय करेगी।

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