चंडीगढ़: पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने चंडीगढ़ में सरकारी आवास में अपने 2 अधिकारियों के निर्धारित अवधि से अधिक समय तक रहने के मामले में हरियाणा सरकार से जवाब मांगा है। राज्य और केंद्र शासित प्रदेश प्रशासन के रुख में विरोधाभास पाए जाने के बाद यह जवाब मांगा गया है।
मार्च 2025 में केंद्र शासित प्रदेश की एक रिपोर्ट में खुलासा हुआ था कि वीरेंद्र सिंह शेरावत और नीरज कुमार नाम के 2 अधिकारी 6 माह की रियायती अवधि समाप्त होने के बाद भी सरकारी आवास में रह रहे हैं। हरियाणा सरकार ने दावा किया था कि किसी भी सरकारी आवास में इस तरह की कोई भी अवधि समाप्त होने से पहले नहीं रुकी है।
अदालत ने कहा कि हरियाणा का रुख गलत प्रतीत होता है। चीफ जस्टिस शील नागू और जस्टिस संजीव बेरी की खंडपीठ ने अतिरिक्त मुख्य सचिव एक अधिकारी से 14 अक्तूबर तक हलफनामा मांगते हुए कहा कि हरियाणा या उसके पदाधिकारियों के खिलाफ आगे बढ़ने से पहले हरियाणा को उपरोक्त विसंगति या गलत जानकारी बा स्पष्टीकरण देने का अवसर देना उचित होगा।
न्यायालय ने चंडीगढ़ प्रशासन से यह भी पूछा कि हाईकोर्ट के कितने कर्मचारियों/अधिकारियों को सरकारी आवास आबंटित किया गया है और वे उसमें रह रहे हैं और कितने लोग इसका इंतजार कर रहे हैं। यह जानकारी हाईकोर्ट के कर्मचारियों को चंडीगढ़ में उचित सरकारी आवास नहीं मिलने के मुद्दे पर 2024 में शुरू की गई एक स्वप्रेरणा जनहित याचिका की पुनः सुनवाई दौरान मांगी गई थी।
इस वर्ष मार्च में न्यायालय ने कहा था कि जब चंडीगढ़ में न्यायिक अधिकारियों के लिए 45 मकान विशेष रूप से निर्धारित हैं तो फिर हाईकोर्ट के विशेष नियंत्रण में एक समान पूल न्यायालयों के कर्मचारियों को आबंटन के लिए क्यों नहीं उपलब्ध कराया जाए ?