एयर इंडिया विमान की घातक दुर्घटना ने अहमदाबाद के कई परिवारों के पुराने जख्मों को फिर से हरा कर दिया है। हम ऐसा इसलिए कह रहे हैं क्योंकि 1988 में अहमदाबाद में एक हवाई दुर्घटना हुई थी जिसमें करीब 133 लोग मारे गए थे और इंडियन एयरलाइंस दुर्घटना के लगभग 37 साल बाद भी पीड़ितों के परिवार को उचित मुआवजे का इंतजार है जिसके लिए वह संघर्ष कर रहे हैं।
प्रत्येक परिवार को दो लाख रुपये का मुआवजा देने की पेशकश की गई
बॉम्बे से अहमदाबाद के लिए उड़ान भरने वाली इंडियन एयरलाइंस की फ्लाइट 113, 19 अक्टूबर, 1988 को दुर्घटनाग्रस्त हो गई, जिसमें सवार 135 लोगों में से 133 की मौत हो गई। प्रत्येक परिवार को दो लाख रुपये का मुआवजा देने की पेशकश की गई।
उचित मुआवजे का इंतजार
लेकिन टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार, लगभग 20 परिवार अभी भी कानूनी लड़ाई में उलझे हुए हैं, उनका कहना है कि यह राशि अनुचित और बहुत कम थी। उनको अभी भी उचित मुआवजे का इंतजार है।
मुआवजा पीड़ितों की आय और उम्र के आधार पर होना चाहिए- पीड़ित के स्वजन
टाइम्स ऑफ इंडिया के अनुसार, एयर क्रैश क्लेमेंट्स एसोसिएशन के सचिव पंकेश पटेल ने कहा कि हम लगभग 20 परिवार हैं जो अभी भी अदालत में लड़ रहे हैं। हमारा मानना है कि मुआवजा पीड़ितों की आय और उम्र के आधार पर होना चाहिए। इसलिए उच्च न्यायालय के आदेश के बाद, हमने 2010 में सर्वोच्च न्यायालय का रुख किया।
2003 में, सत्र न्यायालय ने इंडियन एयरलाइंस और भारतीय विमानपत्तन प्राधिकरण (एएआई) को मुआवजे पर छह प्रतिशत ब्याज देने का आदेश दिया था।
2009 में गुजरात उच्च न्यायालय ने बढ़ाकर नौ प्रतिशत कर दिया
जिसे बाद में 2009 में गुजरात उच्च न्यायालय ने बढ़ाकर नौ प्रतिशत कर दिया। लेकिन परिवार अभी भी अधिक की मांग कर रहे हैं। उषाबेन पटेल ने अपने पति को खोया, तब उनके बेटे स्कूल में थे। अब वह 74 वर्ष की हैं। उन्होंने अपने पति शरद पटेल को खो दिया, जो एक जर्मन फर्म में वित्त निदेशक थे।
रीताबेन शाह ने बताई अपनी कहानी
उन्होंने कहा कि उस समय मेरे बेटे कक्षा 5 और 3 में थे। मैंने अपने परिवार की मदद से उनका पालन-पोषण किया। वे अब कनाडा में बस गए हैं। लेकिन हां, AI 171 दुर्घटना के बाद घोषित मुआवजा, हमें दिए गए मुआवजे से बेहतर है।
74 वर्षीय रीताबेन शाह ने भी अपने पति सुनील शाह को खो दिया, जो आईआईएम-अहमदाबाद से स्नातक थे। उन्होंने कहा कि हमारी बेटी तब 12 साल की थी। हमने दो लाख रुपये की मदद को अस्वीकार कर दिया और केस दायर कर दिया। अब हम इसे सुप्रीम कोर्ट ले गए हैं।
केतन पटेल, जो त्रासदी के समय 26 वर्ष के थे, उन्होंने अपने पिता रंजीतभाई पटेल को खो दिया। उन्होंने कहा कि वह प्रति वर्ष लगभग 1.25 लाख रुपये कमा रहे थे। हमारी कानूनी लड़ाई शुरू हुए 37 साल हो गए हैं। हम अभी भी न्याय की प्रतीक्षा कर रहे हैं।
अहमदाबाद नगर निगम ने 37 साल पहले मार गए लोगों की याद में एक विमान की संगमरमर की प्रतिकृति, एक स्मारक बनाया है। वहां ये लोग इकठ्ठे होते हैं।
उषाबेन ने कहा कि हम हर साल 19 अक्टूबर को वहां जाते हैं। अहमदाबाद नगर निगम के साथ मिलकर उन्होंने उस स्थान पर शांतिवन नामक एक स्मारक उद्यान भी विकसित किया, जिसमें प्रत्येक खोए हुए जीवन के लिए एक-एक करके 133 पेड़ लगाए गए।