पंजाब की राजनीति दोबारा पंथक मुद्दों की राह पर

पंजाब की राजनीति एक बार फिर से करवट ले रही है। खासकर पंजाब की राजनीति में पंथक मुद्दे एक बार फिर से जोड़ पकड़ सकते हैं। खासकर 1996 में अकाली दल-भाजपा गठबंधन के बाद जो मुद्दे हाशिए पर चले गए थे वह दोबारा पंजाब की सियासत में हावी हो सकते हैं।अकाली दल के बागी धड़े ने पंथक व मिशनरी सिख ज्ञानी हरप्रीत सिंह को अकाली दल का प्रधान व पंथक काउंसिल की चेयरमैन बीबी सतवंत कौर को कमान देकर इसकी शुरुआत कर दी है। पंजाब में अकाली दल पंथक वोटों की वजह से ही सत्तासीन होता आया है।

1996 से पहले अकाली दल बादल के सुप्रीमो प्रकाश सिंह बादल गांवों में घूमकर प्रचार करते रहे कि सत्ता में आने के बाद सिखों की फर्जी मुठभेड़ करने वाले पुलिस अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई के लिए ट्रूथ कमीशन बनाया जाएगा लेकिन ऐसा कोई आयोग गठित नहीं हुआ लिहाजा पीड़ित लोग इंसाफ के लिए अदालतों में धक्के खा रहे हैं।

अकाल तख्त के पूर्व कार्यवाहक जत्थेदार गुरदेव सिंह काउंके को फर्जी मुठभेड़ में मारा गया और 1999 में एडीजीपी बीपी तिवारी की रिपोर्ट में खुलासा हुआ कि मामला गलत था जिसकी एफआईआर अभी तक दर्ज नहीं हुई।1999 के बाद श्री अकाल तख्त साहब के जत्थेदारों को जिस तरह से उतारा गया उससे भी पंथक क्षेत्रों में खासा रोष है। जत्थेदार रंजीत सिंह से लेकर ज्ञानी हरप्रीत सिंह व ज्ञानी रघुबीर सिंह को जिस तरह से बदला गया उससे पंथक लोग निराश हैं। अकाल तख्त साहिब, अमृतसर में स्थित, सिख धर्म का सर्वोच्च धार्मिक और नैतिक सत्ता केंद्र है। इसे 1606 में गुरु हरगोबिंद जी ने स्थापित किया था। यहां से सिखों के लिए धार्मिक आदेश (हुकमनामे) जारी होते हैं।

श्री अकाल तख्त की मर्यादा को काफी नुकसान
जत्थेदार की नियुक्ति में राजनीतिक हस्तक्षेप खासकर अकाली दल व एसजीपीसी की दखलंदाजी से श्री अकाल तख्त की मर्यादा को काफी नुकसान हो रहा है। पंथक क्षेत्रों में यह बात जोर पकड़ रही है कि राजनीति श्री अकाल तख्त साहब पर हावी हो रही है।

अकाल तख्त की नियुक्तियों को राजनीति से अलग करने की मांग
पंथक हलकों में यह मांग जोर पकड़ रही है कि अकाल तख्त की नियुक्तियों को राजनीति से अलग किया जाए। ज्ञानी हरप्रीत सिंह लगातार बंदी सिख कैदियों की रिहाई की मांग कर रहे हैं।
अकाल तख्त साहब के पूर्व जत्थेदार ज्ञानी रंजीत सिंह का कहना है कि 1980-90 के आतंकवाद विरोधी दौर में कई सिखों को गिरफ्तार किया गया, कुछ को उम्रकैद या फांसी की सजा हुई। उनमें से कुछ सजा पूरी करने के बावजूद अब तक जेलों में हैं, जो पंथक अन्याय माना जाता है। इन मामलों की पुनः समीक्षा की जरूरत है। गुरुग्रंथ साहिब की बेअदबी के मामले भी लटक रहे हैं।

14 साल से नहीं हुए एसजीपीसी के चुनाव
गुरुग्रंथ साहिब को सिख धर्म में जीवंत गुरु माना जाता है। अभी तक श्री गुरु ग्रंथ साहिब के मामलों को लेकर सिख संगत में खासा रोष है। 2015 में पंजाब के कई हिस्सों जैसे बहिबल कलां, कोटकपूरा में गोलीकांड के मामलों में इंसाफ अभी तक नहीं मिला। एसजीपीसी के चुनाव भी 14 साल से नहीं हुए।

ज्ञानी हरप्रीत सिंह का कहना है कि यह भी सिखों के साथ अन्याय है। उन्होंने अपने तेवरों से अवगत करवा दिया है कि बादल परिवार से एसजीपीसी छीन ली जाएगी। बंदी सिंहों व एसजीपीसी को लेकर केंद्र सरकार पर दबाव बनाने की तैयारी की जा रही है। सिख धर्म की वैश्विक पहचान, धार्मिक चिह्नों की रक्षा और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता को लेकर भी सिख संगत संघर्ष की राह पर है।
सूत्रों के मुताबिक, आने वाले दिनों में पंजाब के अहम मुद्दे भी भड़क सकते हैं। एसजीपीसी की सदस्य बीबी किरणजोत कौर का कहना है पंजाब में पंथक मुद्दे लंबे समय से लंबित हैं। पंजाब कमजोर हो रहा है और अब बचाने का समय है।

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