मध्य प्रदेश में ओबीसी वर्ग को कानून बनने के छह साल बाद भी सरकारी नौकरी में 27 प्रतिशत आरक्षण नहीं मिल पा रहा है। 2019 में कानून बनने के बाद आरक्षण में कानूनी अड़चनों के चलते आरक्षण देने पर रोक लग गई थी। इसके बाद से यह मामला हाईकोर्ट के बाद अब सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है। इस पर सुप्रीम कोर्ट 23 सितंबर से रोजाना सुनवाई करने का निर्णय लिया है। इस मामले को लेकर भाजपा और कांग्रेस दोनों ही ओबीसी को आरक्षण का लाभ देने को लेकर श्रेय लेने का दावा करते हैं। अब मामले में मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने अपने बयानों में कहा कि उनकी सरकार ओबीसी वर्ग को उनका हक देने के लिए प्रतिबद्ध है। सरकार ने अब पहल करते हुए ओबीसी आरक्षण पर गुरुवार को मुख्यमंत्री निवास में सर्वदलीय बैठक बुलाई है। बैठक में कांग्रेस, समाजवादी पार्टी और बहुजन समाजवादी पार्टी के प्रतिनिधि शामिल होंगे। इसके अलावा बैठक में ओबीसी आयोग के अध्यक्ष रामकृष्ण कुसमारिया, मंत्री कृष्णा गौर और नारायण सिंह कुशवाह समेत अन्य प्रमुख नेता भी मौजूद रहेंगे। सरकार का उद्देश्य सभी दलों की राय और सुझाव लेकर रणनीति बनाना है। ताकि ओबीसी वर्ग को उनका हक दिलाया जा सके।
सरकारी भर्ती में 13% पद रोके
मध्य प्रदेश में ओबीसी वर्ग को फिलहाल 14 प्रतिशत आरक्षण का लाभ मिल रहा है। 2019 से 27 प्रतिशत आरक्षण देने का कानून बनने के बाद से सरकारी भर्तियों के 87 प्रतिशत पदों पर ही नियुक्ति दी जा रही है, जबकि 13 प्रतिशत पद कोर्ट के निर्णय तक रोके गए हैं। इसके खिलाफ ओबीसी वर्ग के छात्रों और ओबीसी महासभा ने कोर्ट में याचिका दायर की है।
एमपीपीएससी ने नया हलफनामा दायर किया
गुरुवार को भोपाल में होने वाली सर्वदलीय बैठक के पहले एमपीपीएससी ने बुधवार को सुप्रीम कोर्ट में नया हलफनामा दायर कर दिया। इसमें उसने कहा है कि आरक्षण का निर्धारण राज्य सरकार का विषय है। आयोग ने अपना पिछला हलफनामा वापस ले लिया है। आयोग ने कहा कि उनका काम सरकार की नीतियों का पालन करना हैं। साथ ही आयोग ने माफी मांगते हुए पिछला हलफनामा वापस लेने की मांग भी की।